भाग 2 - मेवाड़ का इतिहास
बाप्पा रावल /
कालभोज
बप्पारावल का
जन्म | Bappa Rawal Born| :-
बप्पा रावल का जन्म 713-714 ईस्वी में हुआ था | बप्पारावल एक महान योधा थे |
बप्पारावल के समय चित्तोर पर मोर्य वंश के
अंतिम शासक मानमोरी का शासन था | बप्पारावल ने चित्तोर पर आक्रमण कर मानमोरी को
हराकर रावल राजवंश की स्थापना की चूँकि बप्पारावल गुहिलोत के वंशज थे इसलिए इस
राजवंश को गुहिल / गुहिलोत आदि नामो से भी जाना जाता था और बाद में यही गुहिलोत राजवंश सिसोदिया
राजवंश नाम से प्रसिद्ध हुआ जिनमें आगे चल
कर महान राजपूत राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए। बप्पा रावल बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक
शब्द नहीं है, यह आदरसूचक शब्द है "बापा" शब्द
भी मेवाड़ के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है। इसके प्रजासरंक्षण,
देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा
पदवी से विभूषित किया था। ऐसा माना जाता है कि जब 6 वी सदी में वल्लभी की रानी पुष्पावती जब गर्भवती थी तो ईश्वर से अपने
संतान की रक्षा के लिए तीर्थयात्रा पर गयी थी | जब वो अरावली की
पहाडियों से सफर कर रही थी तब उसे अपने पति की मृत्यु और वल्लभी के विनाश की खबर
सूनी | इसी डर से उसने अरावली की पहाडियों पर एक गुफा में
शरण ली जहा पर उसके सन्तान हुयी | उसका नाम उसने गुहिल Guhil
मतलब “गुफा में जन्म “रखा | उसने अपने पुत्र को दासियों को सौंपकर अपने
पति के अंतिम संस्कार के लिए वल्लभी चली गयी | गुहिल का
पालन पोषण अरावली की पहाडियों में 2000 ईस्वी पूर्व से रह
रहे भील जनजाति ने की| 6वी सदी में जब गुहिल केवल
पांच वर्ष का था उसे वल्लभी का सिंहासन पर बिठा दिया गया |
एक प्रचलित प्रथा के अनुसार गुहिल ने 566 ईस्वी में गहलोत वंश की स्थापना की | गुहिल का वंशज गृहदित्य था जिसने अरावली की पहाडियों में वर्तमान गुजरात में स्थित इदार को अपनी राजधानी बनाया | 7वी सदी में उनके वंशज नागादित्य उत्तर से मेवाड़ के मैदानों में नागदा नामक कसबे में बस गये | नागदा Nagda उदयपुर से 25 किमी की दूरी पर के कस्बा है जिसका नाम गुहिल वंश के चौथे शाषक नागादित्य के नाम पर रखा गया | नागादित्य ने रावल वंश की स्थापन की और मेवाड़ की राजधानी नागदा बना दी |
गुहिल ---> 566 इसवी .
भोज ---> 586 ईस्वी.
महेंद्र ---> 606 ईस्वी.
नागादित्य --> 626 ईस्वी.
शिलादित्य -- > 646 ईस्वी. ( सामोली अभिलेख में शिलादित्य की जानकारी मिलती है )
अपराजित --> 666 ईस्वी.
महेंद्र दितीय --> 696 ईस्वी.
कालभोज (बप्पारावल ) --> 716 ईस्वी.
कालभोज (बप्पारावल ) --> 716 ईस्वी.
यह गणना प्रत्येक राजा के औसत 20 वर्ष शासन करने पर (मानकर ) मानली गयी है तथा इसी आधार पे गणना करने पर ज्ञात होता है के बप्पारावल 716 ईस्वी के बाद होता है |
717 ईस्वी में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पे आक्रमण किया था
734 ईस्वी में बाप्पा रावल ने मान मोरी को हराकर चित्तोर्गढ़ पर कब्ज़ा किया था |
नागादित्य Nagaditya का पुत्र सिलादित्य , सिलादित्य का पुत्र अपराजित और
अपराजित का पुत्र महेंद्र द्वितीय था | महेंद्र
द्वितीय को मालवा के मोरी साम्राज्य के मान सिंह मोरी ने मार दिया | महेंद्र द्वितीय के पुत्र कालभोज जिसे बप्पा
रावल भी कहते है , चित्तोड़ पर
राज करने वाले मोरी साम्राज्य को हरा दिया और चित्तोड़ को जीत लिया | बप्पा रावल ने मेवाड़ की
राजधानी चित्तोड बना दी | बप्पा
रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि
स्थित है
बप्पारावल का राज्यकाल(723 – 753 ईस्वी)
महाराणा कुंभा के समय में रचित एकलिंग
महात्म्य में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. दिया है। एक दूसरे एकलिंग माहात्म्य
से सिद्ध है कि यह बापा के राज्यत्याग का समय था। यदि बापा का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् 723 के लगभग गद्दी पर
बैठा होगा। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे,
किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के
राजाओं के हाथ में था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने
मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। बप्पा रावल को हारीत
ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है टॉड को यहीं
राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख
मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।
चित्तोर पर अधिकार
उस समय चित्तोर को चित्रकूट
कहा जाता था | उस समय चित्तौड़ पर अधिकार करना कोई आसान काम न था।
अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। अरबों
ने चारों ओर धावे करने शुरु किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराया। मारवाड़, मालवा, मेवाड़, गुजरात आदि
सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं। नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और
मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए
किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य
किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा
रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना
से उत्पन्न हुई होंगी।
बप्पा रावल ने अपने विशेष सिक्के जारी
किए थे। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लिखा हुआ है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी
ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक
पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी
ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा
रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं। एकलिंग जी का मन्दिर - उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर
का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया | इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है | आदी वराह
मन्दिर - यह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे बनवाया 735 ई. में हज्जात ने राजपूताने पर अपनी फौज भेजी | बप्पा
रावल ने हज्जात की फौज को हज्जात के मुल्क तक खदेड़ दिया | बप्पा रावल की तकरीबन 100 पत्नियाँ थीं, जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं, जिन्हें इन शासकों
ने बप्पा रावल के भय से उन्हें ब्याह दीं |
बप्पारावल के युद्ध

बप्पारावल
ने कई युद्ध जीते | सन 738 ईस्वी में कई बार अरब आक्रमणकारियों से युद्ध हुए | ये सभी युद्ध निवर्तमान राजस्थान
की सीमा के भीतर हुए | बप्पा रावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की
सम्मिलित सेना ने अल हकम बिन अलावा, तामीम बिन जैद अल उतबी
व जुनैद बिन अब्दुलरहमान अल मुरी की सम्मिलित सेना को पराजित किया | बप्पा रावल ने
सिंधु के मुहम्मद बिन कासिम को पराजित किया | बप्पा
रावल ने गज़नी के शासक सलीम को पराजित किया | उन्होंने आगे बढ़कर गजनी पर भी आक्रमण
किया और वहां के शासक सलीम को बुरी तरह हराया और अपने भांजे को वहा का शासक नियुक्त किया । उन्होंने गजनी में अपना प्रतिनिधि
नियुक्त कर दिया और तब चित्तौड़ लौटे। चित्तौड़ को अपना केन्द्र बनाकर उन्होंने
आसपास के राज्यों को भी जीता और एक दृढ़ साम्राज्य का निर्माण किया। उन्होंने अपने
राज्य में गांधार, खुरासान, तूरान और ईरान के
हिस्सों को भी शामिल कर लिया था। हालांकि इन क्षेत्रों पर उनका अधिकार अधिक समय तक
नहीं रह पाया। बहुत दूर होने के कारण वे इन पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रख सके।
कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इसका तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ चमर, सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया | इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है | इस तरह इन्होंने कुल 19 वर्षों तक शासन किया |
कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इसका तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ चमर, सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया | इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है | इस तरह इन्होंने कुल 19 वर्षों तक शासन किया |
1869 ई. में आगरा में 2000 चाँदी के सिक्के मिले जिसमे श्रीगुहिल लिखा हुआ है इसका मतलब गुहिल भी बहुत बड़ा रजा हुआ था और उसका राज्य भी बहुत फैला हुआ था |
सी.वी. वैध. ने बाप्पा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टिन से की है
शिलालेखों में वर्णन –
कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को
विप्रवंशीय बताया गया है | आबू के शिलालेख में
बप्पा रावल का वर्णन मिलता है | कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में भी बप्पा
रावल का वर्णन मिलता है | रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व
कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है | हालांकि आज के
इतिहासकार इस बात को नहीं मानते |
कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है | कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया | बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है | नागदा उदयपुर के पास स्थित है |
कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है | कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया | बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है | नागदा उदयपुर के पास स्थित है |
अतः यह कहा जा सकता है की मेवाड़ का
वास्तविक संस्थापक बप्पारावल ही था | उन्होंने ही पहली बार चित्तोर्गढ़ में शासन
स्थापित किया तथा मेवाड़ का नाम ऊँचा किया | वास्तव में बप्पारावल के समान कोई और
शासक मेवाड़ में न हुआ | और अगर बप्पारावल के बराबर अगर कोई सम्मान का हक़दार है तो वह
महाराणा प्रताप और महाराणासांगा (संग्रामसिंह) थे | बप्पारावल की ही तरह महाराणा
प्रताप ने मुगलों और बाहरी आक्रमणकारियों से जिंदगीभर लोहा लेते रहे | महाराणा सांगा के बारे में तो कहा जाता है की उनकी शरीर
पर अस्सी घाव थे | वो हमेशा से युद्ध के लिए लालायित रहते थे | उन्होंने अरबो से
भी युद्ध किये | महाराणा सांगा का साम्राज्य काबुल तक फेला था |
मृत्यु
बप्पारावल की मृत्यु
नागदा में हुई | नागदा में उनकी समाधी स्थित है | नागदा वर्तमान में उदयपुर(राजस्थान)
के पास है |
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