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शनिवार, 9 दिसंबर 2017

भाग - 33 मेवाड़ का इतिहास - सन 1213 - 1261 ईस्वी. रावल जैत्र सिंह | Rawal Jaitra Singh |


भाग 33 - मेवाड़ का इतिहास

रावल जैत्र सिंह 

रावल जैत्र सिंह का जन्म:-
सन 1213 ई. में  रावल जैत्रसिंह मेवाड़ के शासक बने | रावल जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में दिल्ली के 6 सुल्तानों का शासन देखा व 2 को पराजित किया |  रावल जैत्रसिंह ने दिल्ली के शासक नासिरुद्दीन को पराजित किया | सन 1222 ई.  दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया | इसके आक्रमण 7 वर्षों तक (1229 ई. तक) लगातार जारी रहे व इसने नागदा को नष्ट कर दिया | वर्तमान में नागदा उदयपुर के पास स्थित है |

भूताला का युद्ध - सन  1227 ई. | Bhutala Yudh| War of Bhutala | 

भुताला गाँव वर्तमान में गिर्वा तहसील उदयपुर में स्थित है | युद्ध रावल जैत्रसिंह व इल्तुतमिश के बीच गोगुन्दा के पास हुआ | डॉ. गोपीनाथ  लिखते हैं कि यह लेख  उदयपुर से 8 मील उत्तर में स्थित एक नए मंदिर के बाहरी द्वार पर लगा है यह वियना ओरियंटल और फिर इन्डियन एंटिक्वेरी में प्रकाशित हो चुका है. इसमें 36 पंक्तियाँ और 51 श्लोक हैं. इसकी अंतिम पंक्ती में गद्य में संवत 1330 कार्तिक सुदी 1 लिखा है. लेख वागेश्वर और वागेश्वरी की आराधना में शुरू होता है और फिर इसमें गुहिलवंशी बापा रावल के वंशधर पद्मसिंह, जैत्र सिंह, तेज सिंह, और समरसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है. जैत्रसिंह के बारे में लिखता है कि वह इतना पराक्रमी था कि वह शत्रु राजाओं के लिए प्रलय मारुत सदृश था और मालवा, गुजरात,मारवाड़, जांगलदेश तथा सुल्तान उसके मानमर्दन में असफल रहे. लेखक तेज सिंह और समर सिंह की वीरता का भी वर्णन करता है. इससे सिद्ध होता है कि मेवाड़ का इन शासकों के काल में काफी विस्तार हो चुका था और पड़ौसी शत्रु भी अच्छी तरह दबाये गए थे.



तलारक्ष योगराज के पुत्र पमराज नागदा नगर नष्ट होने के समय भूताला के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए | इसमें चैत्रगच्छ के आचार्यों का भी वर्णन मिलता है. इसे आचार्यों में भद्रेश्वरसूरि, देवभद्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, जिनेश्वरसूरि, विजयसिंहसूरि और भुवनसिंहसूरि प्रमुख है. भुवनसिंहसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने चित्तौड़ में रहते हुए चीरवा शिलालेख की रचना की और उनके मुख्य शिष्य पार्श्वचंद ने, जो बड़े विद्वान थे, उसको सुन्दर लिपि में लिखा. पद्मसिंह के पुत्र केलिसिंह ने उसे खोदा और शिल्पी देल्हण ने उसे दीवार में लगाने का कार्य संपादन किया.

गुलाम वंश के संस्‍थापक कुतुबुद्दीन एबक के उत्‍तराधिकारी अत्‍तमिश या इल्‍तुतमिश (1210-1236 ईस्‍वी) ने दिल्‍ली की गद्दी संभालने के साथ ही राजस्‍थान के जिन प्रासादाें के साथ जुड़े विद्या केंद्रों को नेस्‍तनाबूत कर अढाई दिन के झोंपड़े की तरह आनन फानन में नवीन रचनाएं करवाई, उसी क्रम में मेवाड़ पर यह आक्रमण भी था। तब मेवाड़ का नागदा नगर बहुत ख्‍याति लिए था और यहां के शासक जैत्रसिंह के पराक्रम के चर्चे मालवा, गुजरात, मारवाड़, जांगल आदि तक थे। कहा तो यह भी जाता है कि नागदा में 999 मंदिर थे और यह पहचान देश के अनेक स्‍थलों की रही है। अधिक नहीं तो नौ मंदिर ही किसी नगर में बहुत होते हैं और इतनों के ध्‍वंसावशेष तो आज भी मौजूद हैं ही। ये मंदिर पहाड़ी और मैदानी दोनों ही क्षेत्रों में बनाए गए और इनमें वैष्‍णव सहित लाकुलिश शैव मत के मंदिर रहे हैं।


मेवाड़ की ख्‍याति चांदी के व्‍यापार 


जैत्रसिंह के शासन में मेवाड़ की ख्‍याति चांदी के व्‍यापार के लिए हुई। गुजरात के समुद्रवर्ती व्‍यापारियों तक भी यह चर्चा थी किंतु व्‍यापार अरब तक था। इस काल में ज्‍योतिष के खगोल पक्ष के कर्ता मग द्विजों का प्रसार नांदेशमा तक था। कहने को तो वे सूर्य मंदिर बनाते थे मगर वे मंदिर वास्‍तव में वर्ष फल के अध्‍ययन व वाचन के केंद्र थे।

अल्‍तमिश की आंख में जैत्रसिंह कांटे की तरह चुभ रहा था क्‍योंकि वह मेवाड़ के व्‍यापार पर अपना कब्‍जा करना चाहता था। जैत्रसिंह ने उसके हरेक प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया। इस पर अल्‍तमिश ने अजमेर के साथ ही मेवाड़ को अपना निशाना बनाया। चौहानों की रही सही ताकत को भी पद दलित कर दिया और गुहिलों के अब तक के सबसे ताकतवर शासक काे कैद करने की रणनीति अपनाई। यह योजना पृथ्‍वीराज चौहान के खिलाफ मोहम्‍मद गौरी की नीति से कोई अलग नहीं थी। उसने तत्‍कालीन मियांला, केलवा और देवकुल पाटन के रास्‍ते नांदेशमा के नव उद्यापित सूर्य मंदिर को तोड़ा, रास्‍ते के एक जैन मंदिर को भी धराशायी किया। नांदेशमा का सूर्यायतन मेवाड़ में टूटने वाला पहला मंदिर था। 

सल्‍तनत सेना को जैत्रसिंह ने मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास किया

तूफान की तरह बढ़ती सल्‍तनत सेना को जैत्रसिंह ने मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास किया। तलारक्ष योगराज के ज्‍येष्‍ठ पुत्र पमराज टांटेर के नेतृत्‍व में एक बड़ी सेना ने हरावल की हैसियत से भूताला के घाटे में युद्ध किया। हालांकि वह बहुत वीरता से लड़ा मगर खेत रहा। उसने जैत्रसिंह पर आंच नहीं आने दी। गुहिलों ne ही नहीं, चौहान, चदाणा, सोलंकी, परमार आदि वीरवरों से लेकर चारणों और आदिवासी वीरों ने भी इस सेना का जोरदार ढंग से मुकाबला किया गोगुंदा की ओर से नागदा पहुंचने वाली घाटी में यह घमासान हुआ। लहराती शमशीरों की लपलपाती जबानों ने एक दूसरे के खून का स्‍वाद चखा और जो धरती बचपन से ही सराहा होकर मां कहलाती है, उसने जवान ख्‍ाून को अपने सीने पर बहते हुए झेला।

इसमें जैत्रसिह को एक शिकंजे के तहत घेर लिया गया किंतु उसको योद्धाओं ने महफूज रखा और पास ही नागदा के एक साधारण से घर में छिपा दिया। अल्‍तमिश का गुस्‍सा शांत नहीं हुआ। उसने आगे बढ़कर नागदा को घेर लिया। एक-एक घर की तलाशी ली गई। हर घर सूनसान था। उसने एक एक घर फूंकने का आहवान किया। यही नहीं, नागदा के सुंदरतम एक एक मंदिर को बुरी तरह तोड़ा गया। हर सैनिक ने अपनी खीज का बदला एक एक बुत से लिया। सभी को इस तरह तोड़ा-फोड़ा क‍ि बाद में जोड़ा न जा सके...। तभी तो यहां कहावत रही है-

                               'अल्‍त्‍या रे मस मूरताऊं बाथ्‍यां आवै
                जैत नीं पावै तो नागदो हलगावै।

इस पंक्ति मात्र चिरस्‍थायी श्रुति ने भूतालाघाटी के पूरे युद्ध का विवरण अपने अंक में समा रखा है।


रावल जैत्र सिंह का राज्यकाल(1213 – 1261 ईस्वी)
 
रावल जैत्र सिंह के युद्ध

रावल जैत्रसिंह ने युद्ध जीत लिया 


सन 1229 ई. नागदा पर इल्तुतमिश का अन्तिम हमला

सन 1234 ई.  दोनों सेनाओं के बीच फिर युद्ध हुआ, पर इस बार रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश को पराजित किया

सन 1236 ई. बीमारी के चलते इल्तुतमिश की मृत्यु हुई और उसकी पुत्री रज़िया सुल्तान दिल्ली के तख्त पर बैठी
 
मृत्यु
सन 1253 ई. रावल जैत्रसिंह का देहान्त हुआ |

10 टिप्‍पणियां:

  1. अल्‍त्‍या रे मस मूरताऊं बाथ्‍यां आवै,
    जैत नीं पावै तो नागदो हलगावै।'


    Iska matlab samjhaye bhai, bhut hi Sundar lekh likha, Naya Janne Ko mila aaj

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    उत्तर
    1. मैं मारवाङ क्षेत्र से हुं इस कहावत का प्रथम शब्द का अर्थ मुझे नहीं पता है बाकियों के अर्थ लिख रहा हूं आप समझ जाएंगे
      रे= के
      मस =बहाना
      मुरताऊं= मूर्तियों से
      बाथ्यां आवै = भिङते हैं (यानी अल्तया के बहाने से मूर्तियों से भिड़ते है )
      जैत नी पावे तो नागदा हलगावै= जैसा ऊपर लिखा है कि जब इल्तुतमिस के सैनिक राणा जैत्र सिंह को ढूंढ नहीं पाते तो उन्हें नागदा को जलाने का आदेश मिलता है इसलिए इस पंक्ति में लिखा है कि अल्तया के बहाने से मूर्तियों से भिड़ते है और जब राणा जैत्र सिंह को नहीं पाते तो नागदा को आग लगा देते हैं।

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    2. अल्त्या मतलब इल्तुत्मिस

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    3. ShyampArshvnath mndir jetaldevi ne bnvAya tha vo kiski patni thi?

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  2. बहुत ही सुंदर लेख पढ़ते पढ़ते सर्च मारा आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी धन्यवाद

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