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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

भाग - 43 मेवाड़ का इतिहास - सन 1469 - 1473 ईस्वी. महाराणा उदा (उदय सिंह) | Maharana Uda |



भाग 43 - मेवाड़ का इतिहास
महाराणा उदा (उदय सिंह)  
महाराणा उदा जन्म:-
 
महाराणा उदा मेवाड़ के लिए एक कलंक था | महाराणा कुम्भा को उदा ने भ्रमित कर दिया और इसी भ्रम के कारण महाराणा कुम्भा  ने रायमल को मेवाड़ से निष्काषित कर दिया | रायमल अपनी रानी रतन कँवर के पीहर इदर में रहने के लिए चले गए | रायमल अपनी रानी रतन कँवर को अगाध प्रेम करते थे | इस कारण वो उनसे दूर भी नहीं जाना चाहते थे | उदा ने अपने छल - बल से सिहासन पर कब्ज़ा ज़माने का भरपूर प्रयास किया अंतत जब उसकी एक नहीं चली तो उसने अपने पिता का वध कर दिया और वह कुम्भलगढ़ के सिंहासन पर आरुढ़ हो गया उस समय महाराणा कुम्भा की राजधानी कुम्भलगढ़ थी | मेवाड़ की प्रजा उस पापी हत्यारे को कैसे अपना राजा मान लेती अतः  उसके विरुद्ध जन विद्रोह भड़क उठा और सन 1473 में जन विद्रोह ने उदा को सिंहासन से उखाड़ फेंका और रायमल को राजा के रूप में मान लिया | अब रायमल को लेने के लिए मेवाड़ के सभी सरदार व सामंत इडर पंहुचे और रायमल को चित्तोर्गढ़ लाकर राज्याभिषेक कर दिया  अब मेवाड़ का सारा भार राणा रायमल पर आ चूका था |
जन विद्रोह के कारण उदा को राजगद्दी से वंचित होना पड़ा अतः: वह पाने पुत्रो सूरजमल और सह्समल के साथ कई राजपूत राजाओ से सहायता मांगी लेकिन मेवाड़ के विरुद्ध किसी भी राजपूत राजा ने सहायता नहीं की | थक हार कर उसने मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी से सहायता मांगी जिसे मेवाड़ का विनाश करना था |
सुल्तान ग्यासुद्धीन खिलजी ने सशर्त सहायता का वचन दिया | उसने शर्त रखी की अगर वह उसकी पुत्री का विवाह अपने सहजादे से कर दे तो वह सहायता करेगा | यह शर्त राजपूती आन बान और शान के विपरीत थी लेकिन क्रोधातिरेक वह यह शर्त भी मान गया | और उसने विवाह के लिए वचन दे दिया | कुल द्रोही और पितृ हन्ता जैसे ही मांडू के महल से निकला घनघोर बिजली कडकी और उसके प्राण पखेरू उड़ गए |
ग्यासुद्धीन को लगा की अच्छा अवसर कही खो न जाय इसलिए उसने उदा के पुत्रो से समझोता कर लिया | पिता की तरह अंधे पुत्रो ने गयासुद्दीन की शर्त मान कर चित्तोर गढ़ पर आक्रमण कर दिया लेकिन महाराणा रायमल ने अपने कुशल नेतृत्व के बदोलत शत्रु को भागने पर मजबूर कर दिया |  लेकिन इस हार के बाद भी फिर से सुल्तान ने सेना एकत्र कर के जफर खां के नेतृत्व में सेना भेजी | सेना ने कोटा, भेसरोड़, शिवपुर आदि क्षेत्र में भरी रक्तपात किया लेकिन जब ये समाचार महाराणा रायमल को मिला तो उन्होंने फोरेन तुर्क सेना को जा घेरा इस बार सुल्तान भयभीत हो गया और काफी अनुनय विनय किया तब जाकर महाराणा रायमल ने संधि कर ली | इस युद्ध में रायमल ने खेराबाद के किले को अपने अधिकार में कर लिया |

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