* पिता - राणा अरिसिंह प्रथम
* महाराणा हम्मीर ऊनवा गाँव के चन्दाणा
राजपूतों के भाणजे थे
* जब कुंवर हम्मीर छोटे थे, तब
उनके पिता अरिसिंह चित्तौड़ दुर्ग पर मुहम्मद तुगलक की फौज से लड़ते हुए वीरगति को
प्राप्त हुए थे
फिर कुंवर हम्मीर की माता चन्दाणी रानी
ने उनको साथ लेकर ऊनवा गाँव में ग्रामीणों की तरह रहना शुरु किया
* 1325 ई. में मुहम्मद तुगलक दिल्ली के तख्त
पर बैठा | कुछ वर्ष बाद इसने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया
था |
* कुंवर हम्मीर के काका अजयसिंह राणा बने
| राणा
अजयसिंह की बड़ी इच्छा थी, कि चित्तौड़ पर फिर से अधिकार किया जावे |
* मूंजा बालेचा नाम के एक लूटेरे ने राणा
अजयसिंह को बड़ा तंग किया, तो राणा ने अपने बेटों को भेजा, पर
कामयाबी न मिली
फिर पता चला कि कुंवर हम्मीर जीवित हैं, तो
उन्हें बुलाकर ये काम सौंपा गया
13-14 वर्ष के कुंवर हम्मीर ने मूंजा बालेचा
का सिर काटकर राणा अजयसिंह को दिया
तभी राणा अजयसिंह ने मूंजा बालेचा के
रक्त से कुंवर हम्मीर का तिलक किया और कहा कि राणा बनने के असली हकदार आप ही हो
इससे अजयसिंह के पुत्र सज्जनसिंह व
क्षेमसिंह नाराज होकर मेवाड़ से बाहर चले गए | कहते हैं कि इन दोनों के वंशज सितारा, कोलापुर, सावंतवाड़ी, तंजावर, नागपुर
में हैं | सज्जन सिंह के वंश में आगे शिवाजी महाराज हुए
महाराणा हम्मीर सिंह का राज्यकाल(1326 – 1364 ईस्वी)
* राज्याभिषेक - महाराणा हम्मीर के
राज्याभिषेक का समय कवि लोगों ने 1300 ई. बताया है, जो कि सम्भव नहीं है | कर्नल
जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा का राज्याभिषेक 1357 ई.
में हुआ, पर यह भी गलत है | मालूम
होता है कि 1325
ई. से 1351 ई. के बीच इनका राज्याभिषेक हुआ होगा |
* मुहम्मद तुगलक ने चित्तौड़ दुर्ग जालौर
के राव मालदेव सोनगरा को सौंप रक्खा था
मालदेव सोनगरा को मुछाला मालदेव भी कहते है |
* महाराणा हम्मीर ने मेवाड़ की प्रजा को
पहाड़ों में रहने का आदेश दिया, जिससे की लड़ाई-फसाद वगैरह से प्रजा को नुकसान
न हो
* प्रजा के पहाड़ों में जाने से राव
मालदेव सोनगरा के लिए खर्च चलाना मुश्किल हो गया और वो चित्तौड़ पर भारी फौज
मुकर्रर करके अपने वतन जालौर चला गया
* महाराणा हम्मीर ने चित्तौड़ दुर्ग पर
बहुत से हमले किए, पर अधिकार न जमा पाए
* महाराणा हम्मीर के पास फौजी ताकत न के
बराबर थी | महाराणा द्वारिकापुरी की तरफ निकले | जब
वे गुजरात के खोड़ गाँव में पहुंचे, तो
वहाँ बरबड़ी चारण नाम की एक अमीर औरत
ने उनकी मदद की | बरबड़ी चारण ने अपने बेटे
बारु को 500 घोड़ों समेत महाराणा के पास भेज दिया और बदले
में महाराणा से कोई धन नहीं लिया |
महाराणा हम्मीर ने खुश होकर बारु को
आंतरी गाँव की जागीर दी, जहाँ अब तक इनके वंशज हैं
* जालौर का राव मालदेव सोनगरा अपनी फौज
चित्तौड़ दुर्ग में जमाकर खुद जालौर में था
राव मालदेव के सामन्तों ने उनसे
महाराणा हम्मीर से मित्रता करने की
सलाह दी, जिसे मानकर राव मालदेव ने अपनी पुत्री
का विवाह महाराणा हम्मीर से कर दिया
दहेज के रुप में राव मालदेव ने
चित्तौड़ तो नहीं दिया, पर मेवाड़ के दूसरे हिस्से दिये
राव मालदेव ने गलती से अपना एक खास
आदमी भी महाराणा हम्मीर के पास भिजवा दिया
* महाराणा हम्मीर ने इसी आदमी से कूटनीति
से काम लेते हुए चित्तौड़ के द्वार खुलवा दिये
दोनों तरफ के कई लोग मारे गए
राव मालदेव भी अपने बेटों जैसा, कीर्तिपाल, बनवीर, रणधीर
व केलण के साथ चित्तौड़ पहुंचा, पर महाराणा हम्मीर से पराजित होकर
जालौर चला गया
* इस तरह चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा
हम्मीर का अधिकार हुआ
* राव मालदेव सोनगरा मुहम्मद तुगलक के
पास पहुंचा, तो मुहम्मद तुगलक बादशाही फौज के साथ मेवाड़
आया
महाराणा हम्मीर ने मेवाड़ी फौज (राजपूत, भील, मीणा
वगैरह) के साथ हमला किया
इस लड़ाई में मुहम्मद तुगलक पराजित
होकर महाराणा हम्मीर द्वारा कैद हुआ
राव मालदेव का पोता हरिदास महाराणा के
हाथों कत्ल हुआ
* महाराणा हम्मीर ने मुहम्मद तुगलक को 3 माह
तक कैद में रखा
मुहम्मद तुगलक महाराणा को अजमेर, रणथम्भौर, शिवपुर
जिले, 50 लाख का धन व 100 हाथी देकर कैद से छुटा
यहाँ महाराणा हम्मीर की हिम्मत देखनी
चाहिए, क्योंकि उन्होंने मुहम्मद तुगलक
को छोड़ते वक्त उससे ये करार नहीं करवाया कि वह फिर से मेवाड़ पर हमला
नहीं करेगा
* 1351 ई. में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु हुई
* राव मालदेव सोनगरा के बेटे बनवीर ने
महाराणा की अधीनता स्वीकार की
महाराणा ने बनवीर को नीमच, रत्नपुर
व खैराड़ की जागीर दी
बनवीर ने भैंसरोड़ पर हमला कर उसे
मेवाड़ में मिलाया
* राव मालदेव की मृत्यु के बाद जालौर से
एक तोहफा महाराणा के लिए भेजा गया | तोहफे में तलवार थी, जो
आज तक उदयपुर सिटी पैलेस में मौजूद है | हर
वर्ष आश्विन की नवरात्रियों में इस
तलवार का पूजन होता है |
* महाराणा हम्मीर ने गुजरात के खोड़ गाँव
की बरबड़ी देवी को बड़े आदर के साथ चित्तौड़ बुलाया | इनके
देहान्त के बाद महाराणा ने एक मन्दिर
बनवाया, जो अन्नपूर्णा के नाम से चित्तौड़
दुर्ग में मौजूद है |
* बंबावदे के राजा हालू और भाणपुर के
राजा भरत खींची के बीच युद्ध हुआ
महाराणा हम्मीर ने राजा भरत की मदद के
लिए अपने पुत्र कुंवर क्षेत्रसिंह के नेतृत्व में फौज भेजी
कुंवर क्षेत्रसिंह घायल हुए और महाराणा
हम्मीर के काका विजयराज वीरगति को प्राप्त हुए
महाराणा हम्मीर ने राजा हालू पर चढाई
की | महाराणा ने राजा हालू के माफी मांगने पर उसे
जीवनदान दिया |
*कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में महाराणा
हम्मीर को "विषम घाटी पंचानन" की संज्ञा दी गई है
जेम्स टॉड ने हम्मीर को " प्रबल हिन्दू " कहा है
रसिकप्रिया में हम्मीर को "वीर राजा" कहा है
* 1364 ई. में महाराणा हम्मीर का देहान्त हुआ
* महाराणा हम्मीर के 4 पुत्र
हुए -
१) महाराणा क्षेत्रसिंह (खेता)
२) कुंवर लूणा
३) कुंवर खंगार
४) कुंवर बैरीशाल
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