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रविवार, 3 दिसंबर 2017

भाग - 3 मेवाड़ का इतिहास - सन 753 -773 ईस्वी रावल खुमाण | Rawal Khumann |



भाग 3 - मेवाड़ का इतिहास 
रावल खुमाण – प्रथम 
रावल खुम्माण का जन्म:- 

रावल खुमाण के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है क्योकि इनसे जुड़े कोई सिक्के या शिलालेख नहीं मिले पर एक ग्रन्थ खुमाण रासो मिला है जिसको अलग अलग इतिहासकारो ने अलग अलग समय का बताया है | खुमाण नाम के तीन राजा हुए | अतः यह स्पष्ट नहीं है की यह पहला खुमाण है या दूसरा खुमाण है या तीसरा | कई इतिहासकारो के द्द्वारा की गयी विवेचना इस प्रकार है | खुमान रासो के लेखक का नाम दलपति विजय है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास में लिखा है कि” शिवसिंह सरोज के कथानुसार एक अज्ञात नामाभाट ने खुमान रासो नामक ग्रन्थ लिखा था जिसमें श्रीरामचंद्र से लेकर खुमान तक के युद्धों का वर्णन था. यह नहीं कहा जा सकता कि दलपति विजय असली खुमान रासो का रचयिता था | कई इतिहास कारो ने तीनो खुमाण के काल को इस प्रकार दर्शाया है |

प्रथम- 725 ई० से 808 ई० तक 
द्वितीय – 813 ई० से 843 ई० तक
तृतीय - 908 ई० से 933 ई० तक 

अब यहाँ प्रशन यह उठता है की जब बप्पारावल ने सन 753 ईस्वी तक शासन किया तो खुमाण प्रथम का शासन सन 725 ईस्वी से कैसे प्रारंभ हो सकता है | एकलिंग महात्मय ग्रन्थ में बाप्पा रावल का समय संवत् 810 (753 ईस्वी सन ) दिया गया है | कर्नल टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।

 इतिहासकार श्री रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है - 'खम्माण रासो संवत 810 और 1000 के बीच में चित्तौड़ के रावल खुमान नाम के तीन राजा हुए हैं। कर्नल टाड ने इनको एक मानकर इनके युद्धों का विस्तार से वर्णन किया है। उनके वर्णन का सारांश यह है कि कालभोज (बाप्पा) के पीछे खुम्माण गद्दी पर बैठा, जिसका नाम मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है और जिसके समय में बग़दाद के खलीफा अलमामूँ (813-33 ई०) ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की।


 खुम्माण की सहायता के लिए बहुत-से राजा आए और चित्तौड़ की रक्षा हो गई। खुम्माण ने 24 युद्ध किए और वि. संवत 869 से 893 तक राज्य किया। यह समस्त वर्णन 'दलपतविजय' नामक किसी कवि के रचित खुमाण रासो के आधार पर लिखा गया जान पड़ता है। पर इस समय खुमाणरासो की जो प्रति प्राप्त है, वह अपूर्ण है और उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन है। कालभोज (बाप्पा) से लेकर तीसरे खुमान तक की वंश परंपरा इस प्रकार है कालभोज (बाप्पा), खुम्माण, मत्ताट, भर्तृपट्ट, सिंह, खुम्माण (दूसरा), महायक, खुम्माण (तीसरा)। कालभोज का समय वि. संवत 791 से 810 तक है और तीसरे खुम्माण के उत्तराधिकारी भर्तृपट्ट (दूसरे) के समय के दो शिलालेख वि. संवत् 999 और 1000 के मिले हैं। अतएव 190 वर्षों का औसत लगाने पर तीनों खुम्माणों का समय अनुमानत: इस प्रकार ठहराया जा सकता है

1. खुम्माण (पहला) वि. संवत 810-865 (753 -808 ईस्वी सन ) 
2. खुम्माण (दूसरा) वि. संवत 870-900 (813 -843 ईस्वी सन )
3. खुम्माण (तीसरा) वि. संवत 965-990 (908 –933 ईस्वी सन )

'अब्बासिया वंश' का अलमामूँ वि. संवत 870 से 890 तक खलीफ़ा रहा। इस समय के पूर्व खलीफ़ाओं के सेनापतियों ने सिंध देश की विजय कर ली थी और उधर से राजपूताने पर मुसलमानों की चढ़ाइयाँ होने लगी थीं। अतएव यदि किसी खुम्माण से अलमामँ की सेना से लड़ाई हुई होगी तो वह दूसरा खुम्माण रहा होगा और उसी के नाम पर 'खुमानरासो' की रचना हुई होगी। यह नहीं कहा जा सकता कि इस समय जो खुमानरासो मिलता है, उसमें कितना अंश पुराना है। उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन मिलने से यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जिस रूप में यह ग्रंथ अब मिलता है वह उसे वि. संवत् की सत्रहवीं शताब्दी में प्राप्त हुआ होगा। खुमाण रासो को डॉ. उदयनारायण तिवारी ने श्री अगरचन्द नाहटा के एक लेख के अनुसार इसे सं. 1730 - 1760 के मध्य लिखा बताया गया है। इसी तरह श्री रामचन्द्र शुक्ल इसे सं. 969 - सं. 899 के बीच की रचना मानते हैं। 


रावल खुम्माण का राज्यकाल (753 – 773 ईस्वी)

रावल खुमाण के बारे में जानने से ये ज्ञात हुआ की रावल खुमाण का राज्य कल सन 753 ईस्वी से 773 ईस्वी तक रहा होगा | क्योकि कई शिलालेख से ये ज्ञात हो गया की बप्पारावल ने दसन 753 ईस्वी में सन्यास ले लिया था | अतः बप्पारावल के बाद रावल खुमाण सिहासन पर बैठा | 

रावल खुमाण के युद्ध 

 बप्पारावल की तरह रावल खुमाण भी महान योधा रहा होगा | क्योकि बप्पारावल के बाद जैसे ही रावल खुमाण गद्दी पर बैठा उसी समय बग़दाद के खलीफा अलमामूँ ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की। खुम्माण की सहायता के लिए बहुत-से राजा आए और चित्तौड़ की रक्षा हो गई। खुम्माण ने 24 युद्ध किए और वि. संवत 810 से 865 तक राज्य किया। पर यहाँ बगदाद के खलीफा से पहले खुमाण ने युद्ध लड़ा या दूसरे खुमाण ने युद्ध लड़ा यह स्पष्ट नहीं है क्योकि बगदाद के खलीफा अलमामूँ ने (813-33 ई०) ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की | गणना से पता चलता है की ये समय दुसरे खुमाण का था अतः यह स्पष्ट है की अलामामु से लड़ा तो खुमाण ही पर समय के अनुसार दूसरा खुमाण लड़ा | यहाँ यह जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त सूचनाओ तथा इतिहास कारो की किताबो से प्राप्त ज्ञान पर आधारित है | हम इस जानकारी के सही होने का दावा नहीं करते | 

मृत्यु 

खुमाण प्रथम की मृत्यु कब हुई और कैसे हुई इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है | पर गणना से पता चलता है की सन 773 ईस्वी में रावल मत्तट राजगद्दी पर बैठा अतः खुमाण की मृत्यु भी 733 ईस्वी या इसके बाद हुई होगी |

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