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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

भाग - 36 मेवाड़ का इतिहास - सन 1301 - 1303 ईस्वी. रावल रतन सिंह | Rawal Ratan Singh |



भाग 36 - मेवाड़ का इतिहास
रावल रतन सिंह


रावल रतन सिंह  का जन्म:-


रावल रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) का जन्म 13वी सदी के अंत में हुआ था | उनकी जन्म तारीख इतिहास में कही उपलब्ध नही है | रतनसिंह राजपूतो की रावल वंश के वंशज थे जिन्होंने चित्रकूट किले (चित्तोडगढ) पर शासन किया था | रतनसिंह (Rawal Ratan Singh) ने 1302 ई. में अपने पिता समरसिंह के स्थान पर गद्दी सम्भाली , जो मेवाड़ के गुहिल वंश के वंशज थे |
रानी पद्मिनी/रानी पद्मावती - ये जैसलमेर के 9वें महारावल पुनपाल जी भाटी की पुत्री थीं | रानी पद्मिनी की माँ सिरोही कि जाम कंवर देवड़ा थीं |

1540 ई. में लिखे गए पद्मावत ग्रन्थ के अनुसार ये श्री लंका के सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन व रानी चम्पावती की पुत्री थीं, जो कि सही नहीं हैरानी पद्मिनी के सही इतिहास को कुछ कवि लोगों ने तोड़-मरोड़कर कई खयाली किस्से लिखकर राजपूताना की तवारीख को खराब किया | इनमें से सबसे गलत किस्सा अलाउद्दीन का रानी के प्रतिबिम्ब को देखना है | पं. गौरीशंकर ओझा, कविराज श्यामलदास जैसे इतिहासकार भी इन खयाली किस्सों को गलत बताते हैं 

रानी पद्मिनी के बारे में अनेको मत


अलाउदीन रणथम्भोर जीतकर वापस दिल्ली लौट रहा था | उसी साल रावल रतनसिंह (Rawal Ratan Singh) चित्तोड़ की गद्दी पर बैठा | मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत काव्य के अनुसार पद्मिनी की को पाने के लिए अलाउदीन ने चित्तोड़ पर आक्रमण किया था जबकि कुछ इतिहासकार इसे काल्पनिक मानते है तो कुछ इतिहासकार इसे सच बताते है | कुछ किंवदंतीयो के अनुसार रावल रतनसिंह के दरबारी राघव चेतन के देश निकाला दिए जाने पर उसने रावल रतन सिंह से बदला लेने के लिए अलाउदीन खिलजी को रानी पद्मिनी की अपूर्व सुन्दरता का बखान किया जिससे अलाउदीन खिलजी अपने आप को चित्तोड़ आने से नही रोक सका | जबकि खिलजी के तत्कालीन कवि अमीर खुसरो ने अपनी किताबो ने रानी पद्मिनी का कही उल्लेख नही किया है | आधुनिक इतिहासकार भी पद्मिनी कथा को नकारते है | कुछ कथाओं में रावल रतन सिंह की 15 पत्नियों के बारे में भी जिक्र किया है जिसमे पद्मावती उनकी अंतिम पत्नी थी |

एक कहानी यह भी  है -


रानी पद्मिनी के पीहर का एक मुलाज़िम चित्तौड़ आया | ये बहुत बड़ा जादूगर था | इसकी कला से रावल रतनसिंह बड़े खुश हुए, पर एक दिन रावल रतनसिंह इससे नाराज़ हुए और इसे अपनी सेवा से ख़ारिज किया | ये मुलाज़िम दिल्ली में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में गया और वहां अपनी जादूगरी दिखाकर सुल्तान को खुश किया | इस जादूगर ने एक दिन रावल रतनसिंह से बदला लेने के लिए दरबार में सुल्तान के सामने रानी पद्मिनी के रुप की तारीफ की | सुल्तान अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को खत लिखकर रानी पद्मिनी को दिल्ली भेजने की बात कही | इस बात से आग-बबूला होकर रावल रतनसिंह ने एक खत कुछ इस तरह लिखा, कि सुल्तान को अगले ही दिन अपनी बड़ी फौज के साथ चित्तौड़ के लिए कूच करना पड़ा |

अलाउद्दीन के चित्तौड़ दुर्ग में आने की सही वजह कुछ इस तरह है -


जब अलाउद्दीन बादशाही फौज के साथ चित्तौड़ के करीब आया, तो रावल रतनसिंह की फौजी टुकड़ियों ने महलों से बाहर निकलकर कई छोटी-बड़ी लड़ाईयाँ लड़ी | आखिरकार थक-हारकर अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को खत लिखा कि "हमें हमारे कुछ आदमियों समेत किले में आने देवें, जिससे हमारी बात रह जावे, फिर हम चले जायेंगे" | रावत रतनसिंह ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर अलाउद्दीन को 100-200 आदमियों समेत दुर्ग में आने दिया | अलाउद्दीन ने अपनी नाराज़गी छिपाकर रावल रतनसिंह से दोस्ताना बर्ताव किया | जब रुखसत का समय हुआ, तो रावल रतनसिंह सुल्तान अलाउद्दीन को दुर्ग से बाहर पहुंचाने गए | इस समय अलाउद्दीन रावल रतनसिंह का हाथ पकड़कर दोस्ती की बातें करता हुआ दुर्ग से बाहर चलने लगा और मौका देखकर अपनी छुपी हुई फौज को बाहर निकालकर रावल का अपहरण कर अपने डेरों में ले गया

1303 ई. किले वालों ने अलाउद्दीन के डेरों पर जाकर कई बार बातचीत कर रावल रतनसिंह को छुड़ाने की कोशिश की, पर हर बार अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी के बदले रावल को छोड़ने की बात कही  इतिहास में कुछ एेसे योद्धा भी हुए, जिनके नाम हमेशा साथ-साथ ही लिए जाते हैं, जैसे :- जयमल-पत्ता, जैता-कूम्पा, सातल-सोम  इसी तरह रानी पद्मिनी के समय गोरा-बादल नाम के योद्धा थे  | गोरा-बादल ने चित्तौड़ के सभी सर्दारों से सलाह-मशवरा किया कि किस तरह रावल रतनसिंह को छुड़ाया जावे |

गोरा-बादल ने एक योजना बनाई



अलाउद्दीन को एक खत लिखा गया कि, रानी पद्मिनी एक बार रावल रतनसिंह से मिलना चाहती हैं, इसलिए वह अपनी सैकड़ों दासियों के साथ आयेंगी | अलाउद्दीन इस प्रस्ताव से बड़ा खुश हुआ | कुल 800 डोलियाँ तैयार की गईं और इनमें से हर एक के लिए 16-16 राजपूत कहारों के भेष में मुकर्रर किए (बड़ी डोलियों के लिए 4 की बजाय 16 कहारों की जरुरत पड़ती थी) | इस तरह हजारों राजपूतों ने डोलियों में हथियार वगैरह भरकर अलाउद्दीन के डेरों की तरफ प्रस्थान किया, गोरा-बादल भी इनके साथ हो लिए | गोरा-बादल कई राजपूतों समेत सबसे पहले रावल रतनसिंह के पास पहुंचे | जनाना बन्दोबस्त देखकर शाही मुलाज़िम पीछे हट गए | गोरा-बादल ने फौरन रावल रतनसिंह को घोड़े पर बिठाकर दुर्ग के लिए रवाना किया


रावल रतन सिंह का राज्यकाल(1301 – 1303 ईस्वी)

रावल रतन सिंह  के युद्ध

अलाउद्दीन ने हमले कादेश दिया


सुल्तान के हजारों लोग कत्ल हुए | गोरा-बादल भी कईं राजपूतों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए
फरवरी, 1303 ई.  अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी फौज को तन्दुरुस्त कर चित्तौड़ के किले पर हमला किया | इस समय अमीर खुसरो भी अलाउद्दीन के साथ था | रानी पद्मिनी के नेतृत्व में चित्तौड़ के इतिहास का पहला जौहर हुआ | अपने सतीत्व की रक्षा के लिए 1600 क्षत्राणियों ने जौहर किया |

18 अगस्त, 1303 ई.



6 महीने व 7 दिन की लड़ाई के बाद रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग फतह कर कत्लेआम का हुक्म दिया, जिससे मेवाड़ के हजारों नागरिकों को अपने प्राण गंवाने पड़े | सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग अपने बेटे खिज्र खां को सौंप दिया व चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा | रावल रतनसिंह ने पहले ही अपने भाई-बेटों को ये कहकर दुर्ग से बाहर निकाल दिया था कि यदि हम लोग मारे जावें, तो आप सब फिर से किले पर अधिकार कर लें|


मृत्यु


रतनसिंह की मौत पर भी विभिन्न मत

अलग अलग लेखो में रतनसिंह (Rawal Ratan Singh) की मौत के बारे में भी अलग अलग मत है | अमीर खुसरो और उसके समकालीन लेखको ने बताया कि चित्तोडगढ पर कब्जा करने के बाद अलाउदीन खिलजी ने रतनसिंह को बख्श दिया था | एक जैन लेखक कक्का सुरी के अनुसार अलाउदीन रतनसिंह की सारी सम्पति लुटकर ले गया और रतनसिंह को दर दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया | कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार रतनसिंह युद्धभूमि से भाग गया था जिसके बाद लक्ष्मणसिंह किले की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ | पद्मावत के अनुसार रतनसिंह की मौत अलाउदीन के हमले से पहले ही कुम्भलनेर के शासक से युद्ध करते हुए हो गयी थी | मुह्नोत नैन्सी के अनुसार रतनसिंह युद्धभूमि में वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे |

चित्तोड़ विजय के बाद किले का भविष्य

चित्तोड़ विजय के बाद खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खा को चित्तोड़ का शासक बना दिया जो उस समय केवल 7 साल का था | चित्तोड़ किले का भी नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया गया | खिलजी युद्ध के बाद केवल 7 दिन रुका और वापस दिल्ली को रवाना हो गया | खिज्र खा छोटा था इसलिए सारा कार्यभार एक मालिक शाहीन नाम के गुलाम को दिया था लेकिन बाद में वो वाघेला राजा कर्ण के भय से किले से भाग गया था | तब खिलजी ने चित्तोड़ का शासन एक हिन्दू राजा को सौंपने पर विचार किया | खिलजी ने शासन खिज्र खा से मालदेव को सौंप दिया जो कान्हडदेव का भाई था जिसने एक बार खिलजी के जान बचाई थी जब जालोर किले पर आक्रमण हुआ था | अलाउदीन जब मरणशैय्या पर था तब चित्तोड़ पर शासन के लिए अंदरुनी विद्रोह हो गया | 1321 में मालदेव की मौत के बाद सिसोदिया वंश के हम्मीर सिंह के पास चित्तोड़ का शासन आ गया , जो आग भी गुहिल वंश के शासन में रहा |

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