जय मेवाड़

वीरों की भूमि मेवाड़ को शत शत नमन

Breaking News

For Support and Donation : Phone Pay : 9785416632 PayTm : 9785416632

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

महारानी पद्मावती का रोचक इतिहास व कहानी | Maharani Padmavati History in Hindi


महारानी पद्मावती का रोचक इतिहास व कहानी | Maharani Padmavati History in Hindi 

  साथियों, 

अभी हाल ही में संजय लीला भंसाली ने चित्तोडगढ़ की महारानी पद्मावती उर्फ पद्मिनी पर फिल्म बनाई और कई तरीके से इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया | में पहले तो इस तरह से ऐतिहासिक चरित्र पर गलत तरीके से फ़िल्म बनाने का विरोध करता हु | संजय लीला केवल फ़िल्म से बहुत सारा पैसा कमाने के लिए विवादास्पद विषय पर फ़िल्म बना रहा है और इतिहास को तोड़ मरोड़ रहा है | लेकिन उसे ये नहीं मालूम की महारानी पद्मिनी मेवाड़ के लिए एक देवी माँ के सामान है में यहाँ इस लेख के जरिये आपको सच्चाई से अवगत करवाता हु | भारतीय इतिहास के पन्नों में विशेषकर मेवाड़ के इतिहास में अत्यंत सुंदर और साहसी महारानी पद्मावती का उल्लेख है। महारानी पद्मावती को महारानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। महारानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बाल्य काल से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। उनके माता-पिता नें उन्हे बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था। कहा जाता है बचपन में पद्मावती के पास एक बोलता तोता था जिसका नाम हीरामणि रखा गया था।

 महारानी पद्मावती का स्वयंवर 

महाराणा गंधर्वसेन नें अपनी पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए उनका स्वयंवर रचाया था जिस में भाग लेने के लिए भारत के अगल अलग हिन्दू राज्यों के राजा-महाराजा आए थे। गंधर्वसेन के राज दरबार में लगी राजा-महाराजाओं की भीड़ में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था। उसी स्वयंवर में विवाहित राजा महाराणा रतन सिंह भी मौजूद थे। उन्होनें मल्खान सिंह को स्वयंवर में परास्त कर के महारानी पद्मिनी पर अपना अधिकार सिद्ध किया और उनसे धाम-धूम से विवाह रचा लिया। इस तरह राजा महाराणा रतन सिंह अपनी दूसरी पत्नी महारानी पद्मावती को स्वयंवर में जीत कर अपनी राजधानी चित्तौड़ वापस लौट गये।

 चित्तौड़गढ़ राज्य 

प्रजा प्रेमी और न्याय पालक राजा महाराणा रतन सिंह चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे। उनके शासन में वहाँ की प्रजा हर तरह से सुखी समपन्न थीं। राजा महाराणा रतन सिंह रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। कई लोग ये भी कहते है की महाराणा रतन सिंह साहसी नहीं थे लेकिन ये उनकी अपनी सोच है और वो इतिहास नहीं जानते मेवाड़ की मिटटी ही ऐसी है की यहाँ से योधा ही पैदा होते है उनका भव्य दरबार एक से बढ़कर एक महावीर योद्धाओं से भरा हुआ था। चित्तौड़ की सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी।

 चित्तौड़गढ़ और प्रवीण संगीतकार राघव चेतन एक अघोरी 

 महाराणा संगीत प्रेमी थे उनके राज्य में संगीत का बहुत विकास हुआ | चित्तौड़ राज्य में राघव चेतन नाम का संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। महाराणा महाराणा रतन सिंह उन्हे बहुत मानते थे इसीलिये राज दरबार में राघव चेतन को विशेष स्थान दिया गया था। चित्तौड़गढ़ की प्रजा और वहाँ के महाराणा को उन दिनों यह बात मालूम नहीं थी की राघव चेतन संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जनता था। ऐसा कहा जाता है की राघव चेतन अपनी इस आसुरी प्रतिभा का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध करने में करता था। चूँकि उन दिनों जादू टोना को अच्छा नहीं माना जाता था |एक दिन राघव चेतन जब अपना कोई तांत्रिक कार्य कर रहा था तब उसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया और राजदरबार में राजा महाराणा रतन सिंह के समक्ष पेश कर दिया गया। सभी साक्ष्य और फरियादी पक्ष की दलील सुन कर महाराणा नें चेतन राघव को दोषी पाया और तुरंत उसका मुंह काला करा कर गधे पर बैठा कर देश निकाला दे दिया।



 बदला लेने के लिए अलाउद्दीन खिलजी से मिला राघव चेतन

 अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने पर राघव चेतन बदला लेने पर आमादा हो गया। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य रहे गया था और वह था चित्तौड़गढ़ के महाराणा रतन सिंह का सम्पूर्ण विनाश। अपने इसी उद्देश के साथ वह दिल्ली दरबार चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। उन दिनों दिल्ली के बादशाह से मिलना इतना आसान कार्य नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगता है एक दिन अलाउद्दीन खिलजी अपने खास सुरक्षा कर्मी लड़ाकू दस्ते के साथ घने जंगल में शिकार खेलने पहुँचता है। मौका पा कर ठीक उसी वक्त राघव चेतन अपनी बांसुरी बजाना शुरू करता है। कुछ ही देर में बांसुरी के सुर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी और उसके दस्ते के सिपाहियों के कानों में पड़ते हैं। अलाउद्दीन खिलजी फ़ौरन राघव चेतन को अपने पास बुला लेता है राज दरबार में आ कर अपना हुनर प्रदर्शित करने का प्रस्ताव देता है।

तभी चालाक राघव चेतन अलाउद्दीन खिलजी से कहता है- आप मेरे जैसे साधारण पंडित को अपनें राज्य दरबार की शोभा बना कर क्या पाएंगे, अगर हासिल ही करना है तो मेवाड़ पर नजर दोडाइए वहा एक से एक बेशकीमती नगीने मौजूद हैं और उन्हे जीतना और हासिल करना भी सहज है। 

अलाउद्दीन खिलजी ने तुरंत राघव चेतन को पहेलिया बुझानें की बजाए साफ-साफ अपनी बात बताने को कहता हैं। तब राघव चेतन चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहाँ की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज़ खोल देता है और राजा महाराणा रतन सिंह की धर्म पत्नी महारानी पद्मावती के अद्भुत सौन्दर्य का बखान भी कर देता है। यह सब बातें जान कर अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण कर के वहाँ की सम्पदा लूटने, वहाँ कब्ज़ा करने और परम सुंदरी महारानी पद्मावती को प्राप्त करने का मन बना लेता है।

 अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़गढ़ राज्य पर आक्रमण 

 राघव चेतन की बातें सुन कर अलाउद्दीन खिलजी नें कुछ ही दिनों में चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना चित्तौड़गढ़ की और रवाना कर दी। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी पर चित्तौड़गढ़ के किले की अभेद्य सुरक्षा देख कर सारे चोंक गए | अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना स्तब्ध हो गयी। उन्होने वहीं किले के आस पास अपने पड़ाव डाल लिए और चित्तौड़गढ़ राज्य के किले की सुरक्षा भेदने का उपाय ढूँढने लगे।

अलाउद्दीन खिलजी नें राजा महाराणा रतन सिंह को भेजा कपट संदेश

 पड़ाव डालने के बाद अल्लाउद्दीन नित नए तरीके से महारानी को पाने के लिए खोजने लगा | जब से राजा महाराणा रतन सिंह नें रूप सुंदरी महारानी पद्मावती को स्वयमर में जीता था तभी से पद्मावती अपनी सुंदरता के लिये दूर-दूर तक चर्चा का विषय बनी हुई थी। इस बात का फायदा उठाते हुए कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें चित्तौड़ किले के अंदर राजा महाराणा रतन सिंह के पास एक संदेश भिजवाया कि वह पद्मावती की सुंदरता का बखान सुन कर उनके दीदार के लिये दिल्ली से यहाँ तक आये हैं और अब एक बार रूप सुंदरी महारानी पद्मावती को दूर से देखने का अवसर चाहते हैं। अब यहाँ कई लेखग अपनी मन गड़ंत बाते करते है कोई कहता है अल्लाहुदीन ने महारानी पद्मिनी को बहन मानते हुआ देखने की शर्त रखी | अलाउद्दीन खिलजी नें यहाँ तक कहा की वह महारानी पद्मावती को अपनी बहन समान मानते हैं और वह सिर्फ उसे दूर से एक नज़र देखने की ही तमन्ना रखते हैं।

 चित्तौड़गढ़ के महाराणा का जवाब 

 अलाउद्दीन खिलजी की इस अजीब मांग को राजपूत मर्यादा के विरुद्ध बता कर महाराणा रतन सिंह नें ठुकरा दिया। पर फिर भी अलाउद्दीन खिलजी नें महारानी पद्मावती को बहन समान बताया था इसलिये उस समय एक रास्ता निकाला गया। पर्दे के पीछे महारानी पद्मावती सीढ़ियों के पास से गुज़रेंगी और सामने एक विशाल काय शीशा रखा जाएगा जिसमें महारानी पद्मावती का प्रतिबिंम अलाउद्दीन खिलजी देख सकते हैं। इस तरह राजपूतना मर्यादा भी भंग ना होगी और अलाउद्दीन खिलजी की बात भी रह जायेगी। यह बात कई लेखक कहते लेकिन अगर आप google में दर्पण के अविष्कार के बारे में जाने तो आपको पता चलेगा की दर्पण का अविष्कार तो २०० वर्ष पहले ही हुआ उस समय ऐसे दर्पण नहीं होते थे तो कांच में या दर्पण में चेहरा कैसे देख सकते है अतः ये सब बाते निराधार है कोरी कल्पना है | हमारी महारानी सा के चरित्र को गिराने की साजिस है असल बात ये है की हो सकता है की उस समय चेहरा दिखाने की बात हुई हो तो उन्होंने किस्सी दासी का चेहरा दिखाया होगा वो भी पानी में या परदे के पीछे  |



अलाउद्दीन खिलजी नें दिया धोखा

 शर्त अनुसार चित्तौड़ के महाराणा ने अलाउद्दीन खिलजी को परदे या पानी में (आईने में नहीं ) महारानी पद्मावती( किसी दासी का चेहरा दिखाया ) का प्रतिबिंब दिखला दिया और फिर अलाउद्दीन खिलजी को खिला-पिला कर पूरी महेमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। मोका पाकर कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें राजा महाराणा रतन सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर अपनी छावनी में कैद कर दिया।

इसके बाद संदेश भिजवा दिया गया कि – अगर महाराणा महाराणा रतन सिंह को जीवित देखना है तो महारानी पद्मावती को फौरन अलाउद्दीन खिलजी की खिदमद में किले के बाहर भेज दिया जाये।

 महारानी पद्मावती, चौहान राजपूत सेनापति गौरा और बादल की युक्ति 

अब गोरा बादल और महारानी सा के सामने नयी चुनोती आ गयी | चित्तौड़गढ़ राज्य के महाराणा को अलाउद्दीन खिलजी की गिरफ्त से सकुशल मुक्त कराने के लिये महारानी पद्मावती, गौरा और बादल नें मिल कर एक योजना बनाई। इस योजना के तहत किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह सन्देश भेजना था की महारानी पद्मावती अल्लाहुद्दीन के पास आने के लिये तैयार है । और फिर पालकी में महारानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों दासीयों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धाऔ को भेज कर बाहर मौजूद अल्लाहुद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा महाराणा रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की कैद से मुक्त करा लिया जाये।

महारानी पद्मावती के झाल में फंसा अलाउद्दीन खिलजी

 वासना और लालच इन्सान की बुद्धि हर लेती है। अलाउद्दीन खिलजी की हुआ। जब चित्तौड़ बुधि नष्ट जो गयी थी |किले के दरवाज़े एक के बाद एक खुले तब अंदर से एक की जगह सैकड़ों पालकियाँ बाहर आने लगी। जब यह पूछा गया की इतनी सारी पालकियाँ क्यूँ साथ हैं तब अलाउद्दीन खिलजी को यह उत्तर दिया गया की यह सब महारानी पद्मावती की खास दासीयों का काफिला है जो हमेशा उनके साथ हमेशा जाता है।

अलाउद्दीन खिलजी महारानी पद्मावती पर इतना मोहित था की उसने इस बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है। और इस तरह चित्तौड़ का एक पूरा लड़ाकू दस्ता नारी भेष में किले के बाहर आ पहुंचा। जैसे ही पर्दा हटाना चाहा तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया। उसी वक्त चित्तौड़गढ़ के वीर सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया घामाशान युद्ध होने लगा और वहाँ मची अफरातफरी में बादल नें राजा महाराणा रतन सिंह को बंधन मुक्त करा लिया और उन्हे अलाउद्दीन खिलजी के अस्तबल से चुराये हुए घोड़े पर कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। इस लड़ाई मे राजपूत सेनापति गौरा और पालकी के संग बाहर आये सभी योद्धा शहीद हो गये।

 अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण

 अपनी युक्ति नाकाम हो जाने की वजह से बादशाह अलाउद्दीन खिलजी झल्ला उठा उसनें उसी वक्त चित्तौड़ किले पर आक्रमण कर दिया पर वे उस अभेद्य किले में दाखिल नहीं हो सके। तब उन्होने किले में खाद्य और अन्य ज़रूरी चीजों के खत्म होने तक इंतज़ार करने का फैसला लिया। कुछ दिनों में किले के अंदर खाद्य आपूर्ति समाप्त हो गयी और वहाँ के निवासी किले की सुरक्षा से बाहर आ कर लड़ मरने को मजबूर हो गये। अंत में महाराणा रतन सिंह नें द्वार खोल कर आर- पार की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया और किले के दरवाज़े खोल दिये। किले की घेराबंदी कर के राह देख रहे मौका परस्त अलाउद्दीन खिलजी ने और उसकी सेना नें दरवाज़ा खुलते ही तुरंत आक्रमण कर दिया। इस भीषण युद्ध में पराक्रमी राजा महाराणा रतन सिंह वीर गति हो प्राप्त हुए और उनकी पूरी सेना भी हार गयी। अलाउद्दीन खिलजी नें एक-एक कर के सभी राजपूत योद्धाओं को मार दिया और किले के अंदर घुसने की तैयारी कर ली। यहाँ यह जान लेना आवश्यक है की अल्लाहुद्दीन के पास उस समय बहुत बड़ी सेना थी और मेवाड़ नरेश के पास बहुत कम सेना थी फिर भीं उन्होंने घनघोर युद्ध किया था कई वीर सैनिक मारे गए |


 मेवाड़ की महारानी पद्मावती और नगर की सभी महिलाओं नें लिया जौहर करने का फैसला 

युद्ध में राजा महाराणा रतन सिंह के मारे जाने और चित्तौड़गढ़ की सेना के समाप्त हो जाने की सूचना पाने के बाद महारानी पद्मावती जान चुकी थी कि अब अलाउद्दीन खिलजी की सेना किले में दाखिल होते ही चित्तौड़गढ़ के आम नागरिक पुरुषों और बच्चों को मौत के घाट उतार देगी और औरतों को गुलाम बना कर उन पर अत्याचार करेगी। इसलिये राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें जौहर करने का फैसला लिया। जोहर का फेसला लेने के बाद महारानी सा ने अपने पुत्र उदयसिंह को अपने संबंधियों के पास गुप्त रीती से किले के बाहर भेज दिया था उन्होंने कई लोगो को और बच्चो को गढ़ से बाहर भेज दिया |

जौहर की रीति निभाने के लिए नगर के बीच एक बड़ा सा अग्नि कुंड बनाया गया और महारानी पद्मावती और अन्य महिलाओं ने एक के बाद एक महिलायेँ उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि दे दी। इस जोहर में महारानी करीब १६००० औरतो के साथ में कूदी थी | अब कई लोगो ने ये प्रश्न भी किया की इतनी औरते किले में कहा से आयी ? तो उसका उतर यह है की जब युद्ध के आसार बनते है तो किले के बाहर रहने वाले सभी नागरिको को किले के अन्दर ले लिया जाता है चाहे वह आम नागरिक या कोई राज कर्मचारी | इस तरह ग्रामीणों और राजपुत महिलाओ को मिला कर १६००० हो गयी थी |

 आज वक्त है फिर से एक जोहर का लेकिन ये अग्नि जोहर नहीं है ये विरोध करने का जोहर है में आज उन लोगो से जो अपने आप को क्षत्रिय कहते है को कहना चाहता हु की क्यों नहीं उठ खड़े हो रहे हो ? क्या आपका खून नहीं खोलता ? क्या आपका खून पानी हो गया ? जो आज फिर से मेवाड़ की महारानी का अपमान करने आया है ये पापी ? मुझे तो लगता है की ये भंशाली ही उस समय का खिलजी होगा जो फिर से जन्म लेकर अपमान करने आया है | अतः हिन्द की आन बान शान महारानी पद्मावती सा के चरित्र को धूमिल करने वाले अल्लाहुद्दीन भंशाली को को ये समजाना होगा की इतिहास क्या है | और मेवाड़ का अपना एक गोरवशाली इतिहास रहा है और रहेगा | इतिहास में महाराणा रतन सिंह, महारानी पद्मावती, सेना पति गौरा और बादल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है और केवल चित्तौड़गढ़ की सेना वहाँ के आम नागरिक ही नहीं वरन सम्पूर्ण मेवाड़ के लोग भी सम्मान के साथ याद किये जाते हैं जिनहोने अपनी जन्म भूमि की रक्षा के खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया। ` 

जय मेवाड़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें